गुरुवार, 5 सितंबर 2013

शिक्षक दिवस - स्मृतियाँ

शिक्षक दिवस - जैसा की हम सब जानते हैं, डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी के जन्म-दिवस के उपलक्ष में मनाते हैं. शिक्षक दिवस से मेरी स्मृतियाँ जाती हैं मेरे कॉलेज के दिनों की ओर जब में कॉलेज में एक नवागंतुक हुआ करता था। मुझे आज भी याद है कैसे हमारी वनस्पति-विज्ञान (botany) की व्याख्याता (lecturer) श्रीमती अमिता जी ने हमें संबोधित किया था। उनके शब्द आज तक मेरे कानों में गूंजते हैं। उनकी २ प्रमुख बातें थीं की फ़ैशन से दूर रहो, दूसरी मोबाइल फ़ोन से दूर रहो। अब आप सोचेंगे कैसे संकीर्ण विचार थे उनके? मैं आपको बता दूं, उनका उद्देश्य केवल यह था की हम जो खर्चा दूसरी अनावश्यक वस्तुओं पर करेंगे, उससे कहीं अधिक लाभ पुस्तकों पर व्यय करने पर होगा। चूंकि हम सभी वहां के स्थानीय निवासी थे, मोबाइल फ़ोन की आवशयकता ना के बराबर थी। मुझे आज भी प्रसन्नता होती है की मैंने अपना प्रथम मोबाइल फ़ोन स्नातक की परीक्षा देने का बाद लिया। वो भी जब मुझे अपना गृह-नगर छोड़ कर दिल्ली जाना था। मैं तृतीय वर्ष तक उनके प्रिय छात्रों में शामिल नहीं था और मुझे आज भी ध्यान है कैसे उन्होंने मुझे प्रथम वर्ष की अर्ध-वार्षिक परीक्षा उपरान्त डांट लगाई थी। मुझे ५० में से केवल २१ अंक प्राप्त हुए थे और उनको मुझसे कहीं अधिक की उम्मीद थी। पर जैसा मैंने उपर बताया, तृतीय वर्ष में उनकी मेरे बारे में धारणा बदली जब मैंने उनके कहने पर एक कॉलेज स्तर की क्विज प्रतियोगिता में भाग लिया और प्रथम स्थान प्राप्त किया। मेरा उद्देश्य मेरा बखान करने का नहीं अपितु उस शिक्षिका का बखान करने का है जो सही मायनों में आदर्श थीं। अब कॉलेज छोड़े मुझे ४ वर्ष बीत चुके हैं और मेरी उनसे कभी बात होती है, तो मैं हमेशा उनके उसी संबोधन के बारे में कहता हूँ जो उन्होंने शुरुआत में दिया था। अमित मैडम अपने विषय में पूर्णतयः निष्णात थीं। उनका पढ़ाने का तरीका, अपने विषय की समझ और अपने पेशे को लेकर गंभीरता प्रशंसनीय है। 

आज जब शिक्षकों को देखता हूँ तो विस्मय होता है की कैसे शिक्षा कारोबार बन गयी है। शिक्षक विद्यार्थी को पैसे बनाने का साधन समझते  हैं और विद्यार्थी शिक्षक को मूर्ख। आपसे प्रेम, सम्मान तो रहा ही नहीं। आये दिन के समाचार मिलते हैं की अमुक शिक्षक ने ट्यूशन न लगवाने पर विद्यार्थी को अनुत्तीर्ण कर दिया, अमुक शिक्षक ने विद्यार्थी को दंड-स्वरूप इतना पीटा की उसको हस्पताल ले जाना पड़ा। 

अंत में, यही कहूँगा कि शिक्षक जैसे गौरवमयी पद की गरिमा बचाने की आवशयकता है। काश वो दिन दुबारा आयें जब शिक्षकों को सम्मान की दृष्टि से देखा जाता था। सभी को शिक्षक-दिवस की हार्दिक सुभकामनायें। 

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