गुरुवार, 19 दिसंबर 2013

तर्क-कुतर्क

नमस्कार!  बहुत दिनों के बाद यहाँ कुछ लिख रहा हूँ। जीवन कुछ इस कदर रहस्यों से भरा पड़ा है कि सभी तर्क गलत साबित प्रतीत होते हैं। कुछ दिनों पूर्व समाचार-पत्र में पढ़ा कि पिछले साल १६ दिसंबर को हुए बर्बर काण्ड के आरोपियों को अपनी पढाई चालू रखने कि अनुमति मिल गयी है। मामला यह था कि इतने जघन्य कृत्य को करने के बाद दोषी पाये जाने पर जामिया विश्वविद्यालय ने उन हैवानों को निष्कासित कर दिया था। उन पर भविष्य में भी प्रवेश पर रोक लगा दी थी। परन्तु हमारी न्यायपालिका का सोचना कुछ और ही है। मैं कुछ नहीं कहूंगा विरोध में। बस इतना भर कहना चाहूंगा कि यदि शिक्षा किसी भी मनुष्य का (यद्यपि वे मनुष्य कहलाने के लायक नहीं) मूलभूत अधिकार है, तो किसी का जीवन एवं अस्मिता उससे भी अधिक। जहां एक और एक असहाय लड़की के साथ अति अमानवीय कृत्य किया गया। वहीँ दूसरी ओर दोषियों के अधिकारों कि बातें कही जा रही हैं :( क्या ऐसे पापियों को जीने का भी अधिकार होना चाहिए? शिक्षा तो दूर कि बात है। यही बात उन पर भी लागू होती है जो अम्ल फेंक कर किसी लड़की का समस्त जीवन अभिशप्त बना देते हैं :(
नव वर्ष का आगमन होने को है। ईश्वर ऐसे दरिंदों से दुनिया को बचाये। पुन: मिलेंगे